संविधान पीठ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2006 के फैसले से उत्पन्न एक मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे पर शुक्रवार को फैसला सुनायेगा। शीर्ष अदालत इस कानूनी सवाल पर विचार कर रही है कि क्या एएमयू को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है। अनुच्छेद 30 धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनका प्रशासन करने का अधिकार देता है।
हाईकोर्ट से मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट संविधान पीठ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2006 के फैसले से उत्पन्न एक मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने वर्ष 2019 में इस मामले को सात जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया था। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद एक फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
1 फरवरी को, एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के जटिल मुद्दे से जूझते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एएमयू अधिनियम में 1981 का संशोधन, जिसने प्रभावी रूप से इसे अल्पसंख्यक दर्जा प्रदान किया, केवल ‘आधे-अधूरे मन से किया गया काम’ है। इसने संस्थान को 1951 से पहले वाली स्थिति बहाल नहीं की। जबकि एएमयू अधिनियम, 1920 अलीगढ़ में एक शिक्षण और आवासीय मुस्लिम विश्वविद्यालय स्थापित करने की बात करता है, वहीं 1951 का संशोधन विश्वविद्यालय में मुस्लिम छात्रों के लिए अनिवार्य धार्मिक शिक्षा को समाप्त कर देता है।